वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२८ मई २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />दोहा:<br />जेती देखौं आत्मा, तेता सालिगराम |<br />साधू प्रतषि देव हैं, नहीं पाथर सूं काम ||<br /><br />प्रसंग:<br />जहाँ मन आत्मस्थ हो जाए, मात्र वही जगह मंदिर कहलाए?<br />मंदिर कहने का क्या अर्थ?<br />"साधू प्रतषि देव हैं, नहीं पाथर सूं काम" कबीर के इस दोहे का क्या मर्म है?<br />कबीर ने साधू पर इतना क्यों जोर दिये है? साधू कहने का क्या तात्पर्य है?